ऐसे मनायें लोक संस्कृति दिवस

लोक संस्कृति दिवस – 24 दिसम्बर मनाने के 15 सूत्रीय कार्य क्रम बिन्दुवार :

1:- विद्यालय की प्राथना स्थानीय भाषा मे ।।

2:- 24 दिसम्बर लोक संस्कृति दिवस व बडोनी जी के जीवन चरित्र पर 2 शब्द प्रधानाचार्य द्वारा ।।

“उपस्थित जन समुदाय ,अध्यापक गण व प्यारे बच्चों आज 24 दिसम्बर उत्तराखंड के गांधी माने जाने वाले इंद्रमणि बडोनी जी का जन्म दिवस है । यह दिवस सरकार द्वारा वर्ष 2014 में लोक संस्कृति दिवस के रूप में हम लोगों द्वारा मनाये जाने हेतु प्रदान कर दिया है ।इसका कारण है कि बड़ोनी जी मूल रूप में संस्कृत कर्मी थे । इंद्रमणि बडोनी स्मृति मंच की यह मांग थी कि उनका जन्म दिवस लोक संस्कृति दिवस के रूप में घोषित किया जाय ।अतः यह दिवस हमे अपनी स्थानीय संस्कृति को सँगरक्षित करने व विकसित करने हेतु मिल गया है ।
अब प्रधानाचार्य महोदय अवश्य थोड़ा गढ़वाली या कुमायूंनी या जौंनसारी में बोले । मैं यहां पर गढ़वाली में लिख रहा हूँ । आप चाहें तो यही दोहराएं ।।
उत्तराखंड का गांधी का रूप माँ माणी जाण वाला बडोनी जी को जन्म गांव अखोडी ग्यारह गांव हिंदाव मा 24 दिसम्बर 1925 मा पंडित सुरेशा नन्द जी का घर पर हवे । आप बचपन सी मेघावी छया । आप को सामाजिक जीवन रामलीला से प्रारम्भ होये । आप अपना गांव का प्रधान रहीन व शीघ्र ही कुछ वर्षों बाद प्रमुख हवे गेन ।फिर 2,3 बार आप देवप्रयाग से एम0एल0ए0 रहिन । बाद मा आपन देखी कि बिना अलग राज्य की यख की समस्या नई सुलझी सकदिन त आप उत्तराखंड क्रांति दल मा सम्मिलित ह्वे गैंन । उक्रांद वालों न आप सहर्ष स्वीकार करी न । एक प्रकार से उत्तराखंड क्रांति दल को तभी पहचान मिली जब बडोनी ये दल मा सम्मिलित ह्वेन ।। बाद मा उत्तराखंड प्राप्ति का खातिर उत्तराखंड का सभी दलों न बडोनी जी को नेतृत्व स्वीकार करी याली छौ । बडोनी जी को आंदोलन विशुद्ध गांधी बादी रये ।।धीरे धीरे केंद्रीय नेतृत्व न स्वीकार करी याली छौ कि उत्तराखंड बाणोंण ही पडलू । अंततः हम तैं राज्य मिली गए ।।बडोनी जी तै सरकार भूली गई थै पर कुछ लागू का प्रयास से द्वी उपलब्धि हम सनी और भी ह्वे गिण ।एक बडोनी की याद जौ का चरित्र मा पहाड़ समायूँ छौ व दूसर यो लोक संस्कृति दिवस ।।

3:- अब मेज पर रक्खे बडोनी जी के चित्र का माल्यर्पण करें ।

4:- संगीत (लोक संस्कृति धुन प्रारम्भ करें) ।

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इसके बाद ठीक निम्न वीडियो की तरह संगीत प्रारम्भ कर पहले 10 मिनट बच्चे व अंतिम 2 मिनट में सभी बच्चे अभिभावक अध्यापक व प्रधानाचार्य लोक संस्कृति नृत्य में सम्मिलित हो जाँय ।। वीडियो देखें।

5:- पांचवें चरण में निम्न वीडियो को आधार बनाते हुये बच्चों से झुमैले करवायें । लड़कियों से मंगल गीत गवाये जांय ।। वीडियो लिंक यहां दिए जा रहे है ।

6:- पृत्येक कक्षा से लोक संस्कृति के महत्व पर एक दो मिनट विचार सुनें ।।
एक विचार यहां दिया जा रहा है ।।

लोक संस्कृति विशाल धरा पर अनेक स्थानों- भू-भागों पर अलग अलग बसे हुये मानव समाज की अपनी अपनी विशिष्ट सभ्यता,रीति-रिवाज, रहन-सहन, पूजा पद्यति, खान -पान, मेले-उत्सव,नृत्य-गीत, भाषा-बोली, वेश-भूषा और अपने संस्कार रहे हैं जिन्हें उस स्थान विशेष की लोक संस्कृति के रूप में जाना गया. परस्पर भिन्नता और कहीं कुछ साम्य ने संस्कृतियों को उनका अपना अनोखापन दिया और दी अलग पहचान. हमारा प्रदेश उत्तराखण्ड भी क्षेत्रीय भिन्नताओं को लिये हुये है जो उसकी लोक संस्कृतियों को निरालापन देता है, यथा गढ़वाल की लोक संस्कृति, कुमाऊँ की लोक संस्कृति, जौनसारी संस्कृति आदि.लोक संस्कृति हमारी पहचान है, हमारा अस्तित्व बोध है.

अपनी पहचान, अपना अस्तित्व अपनी लोक संस्कृति के बिना अधूरा है.लोक संस्कृति के लोप हो जाने पर लोक भीड़ में पहचान भी न रहेगी. अतः अपनी लोक संस्कृति का संरक्षण करना हमारे लिये अपरिहार्य बन जाता है. अपनी लोक संस्कृति को हम अपने लोक गीतों, लोक नृत्य – नाटकों, लोक साहित्य और परम्पराओं- तीज- त्योहारों के माध्यम से जीवित रखना हर लोक समुदाय का पवित्र दायित्व है.।।

मध्यांतर INTERVAL

7:- बडोनी जी के जीवन चरित्र पर पृत्येक बच्चे द्वारा कम से कम 200 शब्द का निबन्ध । लिखने के बाद कुछ होशियार बच्चों से लिखे हुए को पढवाये ।। निम्न लेख से मदद ले सकते हैं ।।

  • “उत्तराखण्ड के गांधी “
  • जन्म-24 दिसंबर 1925
  • जन्म स्थान-ग्राम-अखोड़ी,पट्टी-ग्यारह गांव,वाया-घनसाली,टिहरी गढ़वाल
  • माँ-श्रीमती कल्दी देवी
  • पिताजी-श्री सुरेशानंद
  • कक्षा 4(लोअर मिडिल) अखोड़ी से
  • कक्षा 7(अपर मिडिल)रौडधार प्रताप नगर से
  • पिताजी का जल्दी निधन
  • खेती बाड़ी का काम किया और रोजगार हेतु बॉम्बे भी गये
  • उच्च शिक्षा देहरादून और मसूरी से बहुत कठिनाइयों के बीच पूरी की
  • अपने 2 छोटे भाई महीधर प्रसाद और मेधनीधर को उच्च शिक्षा दिलाई
  • गांव में ही अपने सामाजिक जीवन को विस्तार देना प्रारम्भ किया
  • जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम कराये
  • वीर भड़ माधो सिंह भंडारी नृत्य नाटिका और रामलीला का मंचन कई गांवों और प्रदर्शनियों में किया
  • बहुत अच्छे अभिनेता ,निर्देशक,लेखक,गीतकार,गायक ,हारमोनियम और तबले के जानकार और नृतक थे
  • संगीत में उनके गुरु लाहौर से संगीत की शिक्षा प्राप्त श्री जबर सिंह नेगी थे
  • बालीबाल के कुशल खिलाड़ी
  • जगह-जगह स्कूल खोले
  • 1956 में स्थानीय कलाकारों के एक दल को लेकर गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रमों में केदार नृत्य प्रस्तुत कर अपनी लोक कला को बड़े मंच पर ले गये
  • 1956 में जखोली विकास खण्ड के प्रमुख बने
  • उससे पहले गांव के प्रधान थे
  • 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुचे
  • 1969 में अखिल भारतीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में दूसरी बार विधायक बने
  • 1974 में गोविन्द प्रसाद गैरोला जी से चुनाव हारे
  • 1977 में तीसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित होकर लखनऊ विधानसभा में पहुचे
  • 1989 में  ब्रह्म दत्त जी से चुनाव हारे
  • 1979 से ही पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए वे सक्रिय रहे
  • पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष रहे
  • 1994 में पौड़ी में उन्होंने पृथक उत्तराखंड राज के लिये आमरण अनसन शुरू किया
  • सरकार द्वारा उन्हें मुज्जफरनगर जेल में डाल दिया गया
  • उसके बाद 2 सितम्बर और 2 अक्टूबर का काला इतिहास घटित हुआ
  • उत्तराखंड आंदोलन में कई मोड़ आये
  • पूरे आंदोलन में वे केंद्रीय भूमिका में रहे
  • बहुत ज्यादा धड़ो और खेमों में बंटे आंदोलनकारियों का उन्होंने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया
  • एक अहिंसक आंदोलन में उमड़े जन सैलाब की उनकी प्रति अटूट आस्था ,करिश्माई  पर सहज -सरल व्यक्तित्व के कारण वाशिंटन पोस्ट ने उन्हें “पर्वतीय गाँधी” की संज्ञा दी
  • निधन-18 अगस्त 1999
  • विठल आश्रम ऋषिकेश

8:- बच्चों द्वारा लिखे को ,कुछ बच्चों द्वारा सभा मे ही पढवाएँ । अन्य बच्चों द्वारा लिखे की कक्षा अध्यापक समय के अनुसार जांच कर सकते हैं ।।

9:- यहाँ पर बच्चों द्वारा जिनकी अच्छी प्रैक्टिस हो गीत ( गढ़वाली,कुमायूंनी,जौनसारी ) के गीत सुने । इसके लिए उदाहरण स्वरूप कुछ देने की आवश्यकता नहीं है । जो भी बच्चों को याद हो जो वे गुनगुनाते हों उन गीतों को सुने ।।

10:- इस चरण में अध्यापकगण अपनी गायन कला का परिचय दें ।अर्थात जो भी अध्यापक अपनी लोक गायकी में कुछ सुनाना चाहें वे सुनायें व सभी लोग सुनें ।।

11:- अंताक्षरी :- यहां पर मंच ने उत्तराखंड के 2,3 कलाकारों के माध्यम से एक अंताक्षरी बनाई है । ये 75 गीत हैं ।आप चाहे तो इन्ही का अभ्यास करवाएं ।या अपनी अंताक्षरी तैयार करें ।या वास्तविक रूप से अंताक्षरी करवाएं ।। निम्न अंताक्षरी अखोडी गोदाधार के अध्यापक श्री हरीश बडोनी ने कड़ी मेहनत से तैयार की है व इन्हें स्वर दिया है मंजू सुंदरियाल ने डॉ0 राकेश भट्ट ने व सुषमा व्यास ने ।।

12:- इस चरण में कोई अध्यापक ,अध्यापिका या कोई छात्र या छात्रा हमारे राज्य गीत को पूरा सुनाएँ ।। सभी लोग सुनें ।।

13:- यहां पर सभी विद्यालय में उपस्थित मेहमान ,प्रधानाचार्य,अध्यापक ,छात्र ,छात्राएं राज्य गीत की 4 पंक्ति सामूहिक रूप में संगीत ( यदि ढोल दमोँ हो तो बहुत अच्छा ) अन्यथा हारमोनियम के साथ सभी गायें ।।

14 :- राष्ट्रीय गान ।।

15:- लोक ब्यजंन बच्चों को बंटवाना । जैसे अरसा ,गुलगुला, प्रसाद ,रोट आदि जो भी स्थानीय रूप से सम्भव हो । बंटवाये । फण्ड की कहीं से भी ब्यवस्था कर लें ।।

इंद्रमणि बडोनी स्मृति मंच द्वारा प्रदेश के 36000 विद्यालयों के लिए प्रचारित व प्रसारित

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संस्थापक
(श्री रमेश उनियाल)

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अध्यक्ष

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महा सचिव
(श्री डी0एस0 मेहरा)

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उपाध्यक्ष
(श्री शिवप्रकाश नैथानी)

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कोषाध्यक्ष
(श्री विजय डंगवाल )